शहर के क़िस्से

संकट हिफ़ाज़त मुक्ति

अनिता दुबे

स्टोन माउंटेन, 2016 365 पत्थर, मख़मल, शीशा, अल्युमिनियम

कला आलोचना के अपने शुरुआती दौर में अनिता दुबे की दिलचस्पी नए स्वरूपों और सामग्री के साथ मूर्तिकला निर्माण को विस्तार देने में थी. कलाकार ने जिस तरह मख़मल के कपड़े का अनोखा उपयोग किया है, उसमें अपनी माँ से विरासत में प्राप्त उल्लेखनीय महारत को देखा जा सकता है. मख़मल यहाँ अभिव्यक्ति का माध्यम तो है ही, वस्तु-पूजा और स्पर्श की चाहत का प्रतीक भी है.

यह इन्सटॉलेशन पत्थर के 365 टुकड़ों से बना है, जिन्हें गहरे लाल मख़मल में लपेटा गया है और शीशे की सात परतों पर एक दूसरे के ऊपर सजाया गया है. इस तरह एक बहुत सलीके से एक पहाड़नुमा ढाँचा तैयार हुआ है. दुबे ने इन पत्थरों को ‘उगते और डूबते सूरज की लपटों में नहाए हुए जलते पहाड़’ कहा है.

हिंसा, आज़ादी और प्यार के बारे में साझी यादों और मिथकों की याद दिलाते हुए, पत्थर और मख़मल जैसी परस्पर बेमेल चीज़ें एक ख़ूबसूरत तनाव रचती हैं, जो बताती हैं कि निजी और सामूहिक अनुभवों के बीच का फ़र्क़ हमेशा बहुत साफ़ नहीं होता.

मख़मल में लिपटे पत्थर एक बेशक़ीमती उपहार की निशानी हैं, और यह उपहार है ‘आज़ादी’ (जो एक बेहद लोकप्रिय नारा भी है). फ़र्क़ यह है कि कोई भी उपहार हमेशा नहीं बना रहता, और उपहार देने वाले को उसकी क़ीमत भी चुकानी पड़ती है. आज़ादी की कमी को आज़ादी के अलावा और किस चीज़ से पूरा किया जा सकता है?