शहर के क़िस्से

संकट हिफ़ाज़त मुक्ति

आशिम पुरकायस्थ शेल्टर, 2019पाई हुई वस्तुएँ, राइस पेपर, पत्थर की ईंटें

‘शेल्टर’ शीर्षक देकर आशिम पुरकायस्थ इस शब्द के साथ एक दिलचस्प प्रयोग करते हैं. इन पाए हुए पत्थरों में टूटते-बनते घरों की कहानियाँ हैं. इस तरह, ये एक क़िस्सागो भी हैं और यादों को सँजोए रखने वाली चीज़ें भी, ये विरोध भी जताती हैं और हिफ़ाज़त भी करती हैं.

पुरकायस्थ ने 2014 में दिल्ली शहर में अपनी पैदल यात्राओं के दौरान प्रवासी बस्तियों वाले दूर-दराज़ के इलाक़ों से पत्थर और टूटी हुई ईंटें जमा करना शुरू की थीं. इन पत्थरों को बिना किसी सीमेंट या मसाले के एक के ऊपर एक सजा कर प्रवासी मजदूरों के लिए तुरत-फुरत अस्थायी घर बनाए जाते हैं. इसी अस्थायी संग्रह ने ‘शेल्टर’ इन्सटॉलेशन को जन्म दिया.

अनेक बार धरने में भाग लेते हुए कलाकार ने अक्सर देखा कि कैसे शांतिपूर्ण सभाएँ हिंसक हो उठती हैं, जिनमें पत्थरों का इस्तेमाल भीड़ को निशाना बनाने के लिए और उन्हें तितर-बितर करने दोनों के लिए होता है. ‘अनटाइटल्ड’ में फेंके जा रहे तेज़ रफ़्तार पत्थर कैनवस पर ख़ून और माँस के टुकड़ों जैसे दिखाई देते हैं, जिसमें इस दृश्य के अनेक मायने दर्ज़ हैं.

अनटाइटल्ड पेंटिंग के साथ ‘शेल्टर’ इन्सटॉलेशन को वेनिस बियनाले 2019 के इंडिया पवेलियन में केएनएमए द्वारा प्रदर्शित किया गया था.