शहर के क़िस्से

संकट हिफ़ाज़त मुक्ति

राक़िब शॉ

, एबसेंस ऑफ़ गॉड VIII, 2008 बोर्ड पर एक्रिलिक, ग्लिटर, एनामल और राइनस्टोन्स

पहली नज़र में ये कलाकृति भ्रम में डालती है, दर्शक को यह अपनी गिल्डेड (मुलम्मेदार) और सजीली सतह से मंत्रमुग्ध कर देती है, जिस पर दमकते हुए बिल्लौरी पत्थर (राइनस्टोन), और चमकदार, जगमगाते हुए एनामेल पेंट की सजावट है. लेकिन इस पेंटिंग से गहराई से जुड़ने पर एक लहूलुहान दुनिया के मंज़र सामने आते हैं. होमी भाभा जिसे ‘दैवीय नेतृत्व से वंचित एक दुनिया’ कहेंगे.

एबसेंस ऑफ गॉड–VIII में इस्तेमाल हुए चमकीले रंगों और प्रकृति के भावमय सौंदर्य के साथ राक़िब शॉ की चित्रकारी परीकथाओं और दुस्वप्नों की दुनिया के बीच झूलती है. फूलों के आलीशान बाग़ एक ऐसा मंच बन जाते हैं जहाँ मौत नाचती है, जिसमें कहीं-कहीं खूब लाल रंग के डरावने मकड़ी जैसे जीव दिखाई देते हैं.

उनकी अनोखी शैली में मानवरूपी आकृतियाँ एक बदले हुए रूप में दिखाई देती हैं, और उन्हें इमारतों के सामने दिखाया जाता है. ये इमारतें जोवान्नी बातिस्ता द्वारा चित्रित शाही रोम के खंडहरों से मिलती-जुलती हैं. मानव द्वारा बनाए गए ढाँचों की भव्यता बिखर चुकी है, जिसके बीच जिस्मों को बेधती तलवारें, नाचते हुए कंकाल और अजीबो-गरीब मिश्रित आकृतियाँ हम दर्शकों से रू ब रू होती हैं. ख़ूबसूरत परिंदे मांसखोर जीवों में बदल जाते हैं, जो जिस्मों पर पंजे और चोंच मार कर मांस निकालते हुए दिखाई देते हैं.

इन तस्वीरों में हम जीवन की ख़ूबसूरती और मौत की दहशत के एक ही साथ गवाह बनते हैं. शायद इस सीरीज़ में राक़िब अपने खोए हुए बचपन, अपने मुल्क- और कश्मीर की याद दिला रहे हैं.