शहर के क़िस्से

संकट हिफ़ाज़त मुक्ति

रतिन बर्मन

वी हैव डिफ़रेंट स्पेसेज़ इन माइंड (I) कंक्रीट और वस्तुओं की मिनिएचर ब्रास कास्टिंग

त्रिपुरा से आकर कोलकाता में एक नई जगह और संस्कृति में बसने के बाद महसूस होने वाले अलगाव के नतीजे में रतिन बर्मन ने अपनी नई रिहाइश को क़रीब से देखना शुरू किया. यह कोलकाता के दक्षिणी मुहल्ले थे जहाँ विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान से आकर बसनेवाले प्रवासियों की कॉलोनियाँ थीं.

बर्मन ने बहुत आसपास बसे इन घरों के भीतर की अलग-अलग जगहों पर ग़ौर किया और उनकी छानबीन की, जिनकी चौखटों के भीतर बेशुमार प्रवासियों की उम्मीदें और अपेक्षाएँ फलती-फूलती थीं. एक रूपवादी (फॉर्मलिस्ट) की उत्सुक आँखों से बर्मन ने इन मुसाफ़िर सपनों के भारीपन को कलकत्ता में बनने वाले छोटे और सस्ते घरों के इन नन्हे-नन्हे नमूनों में संजोया है. ये घर इस अनोखी ख़ूबी के लिए जाने जाते हैं कि आसानी से इन्हें आपस में जोड़ कर इनका विस्तार किया जा सकता है, जिसके लिए अक्सर क़ानून के अपरिभाषित अंशों का फ़ायदा उठाया जाता है.

ब्लॉकों के लिए मटेरियल के रूप में कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ है, जिनमें बालकनी या खिड़की की रेलिंग बनाने के लिए पीतल के नाज़ुक आर्मेचर लगाए गए हैं. इस रोज़मर्रा के सौंदर्यबोध के साथ ये कृतियाँ पलायन के बिखरे हुए इतिहासों की कहानियाँ दोहराती हैं. इन घरों की बनावट की जटिलताओं को जानबूझ कर सरल रखा गया है, जिनमें बहुत थोड़े संकेतों की मदद ली गई है, जैसे सीढ़ियाँ, आँगन, या एक छोटी-सी खिड़की, जिनके ज़रिए नज़दीकियाँ पनपती हैं और अजनबी इंसान दोस्त बनते हैं.