शहर के क़िस्से

संकट हिफ़ाज़त मुक्ति

सुधीर पटवर्धन

 

द क्लियरिंग, 2006 कैनवस पर एक्रिलिक

सुधीर पटवर्धन के लिए बंबई/मुंबई एक ही साथ महानगर भी है और उपनगर भी, गगनचुंबी इमारतें भी और झुग्गी बस्तियाँ भी.

पटवर्धन की पेंटिगों में आसमान छूती ऊँची इमारतों को उनके चारों तरफ़ बसी झुग्गी बस्तियों से अलग नहीं किया जा सकता है. उनकी कला इस ऐतिहासिक शहर और इसकी मेहनतकश आबादी के बीच लंबे और लगातार क़ायम रिश्तों को दिखाती आई है. यह सामाजिक ग़ैरबराबरी पर इस तरह रोशनी डालती है कि हम इस विषय पर सोचने को मजबूर हो जाते हैं.

पटवर्धन ने पेंटिंग करना ख़ुद से सीखा है और इस विस्तृत महानगर के बाहरी इलाक़े में रहने वाले इस रेडियोलॉजिस्ट को ‘जनता का चित्रकार’ कहा जा सकता है. हाशिए की जनता के नज़रिए से शहर को देखने का रुझान रखने वाले पटवर्धन की तस्वीरों में मामूली, मेहनतकश आबादी की यात्राएँ मिलती हैं. इनमें दर्ज़ यह तबका हमें मिलता है एक से दूसरी जगह जाते हुए, ट्रेन स्टेशन पर इंतज़ार करते हुए, पुल पार करते हुए, चायखाने या किसी ईरानी रेस्तराँ में कुछ पल गुज़ारते हुए, भीड़ भरी सड़कों और फुटपाथों पर चलते हुए, नज़रों से ओझल कोनों में या उपनगरीय कंस्ट्रक्शन साइटों पर काम करते हुए.

पटवर्धन ने दशकों तक शहर और इसमें होने वाले बदलावों की छानबीन की, जिसमें लगातार तरक्की और पतन के चक्र आते रहे. पेंटिंग द क्लियरिंग में एक ठहरे हुए जलाशय में दूर खाली पड़ी एक ऊँची इमारत का प्रतिबिंब है, जबकि अगले हिस्से में एक खाली पड़ी ज़मीन है जिस पर एक गगनचुंबी इमारत बननी है. बनी हुई खाली इमारत का प्रतिबिंब और बनने वाली इमारत के लिए छूटी हुई खाली जगह आपस में मिल कर एक तकलीफ़देह कड़ी बनाती हैं जिसमें छुपी है ‘एक नए-नवेले महानगर में जीवन’ की वह भविष्यवाणी, जो जल्दी ही साकार होने वाली है.